कभी समंदर किनारे नर्म, ठंडी रेत पर बैठे हुए डूबते हुए सूरज को निहारना ....... और फ़िर यूँ लगे कि मन भी उसी के साथ हो लिया हो। इस दुनिया की उथल-पुथल से दूर, बहुत दूर और पा लेना कुछ सुकून भरे लम्हें ....... किसी पहाड़ी की चोटी पर बने मन्दिर की सीढियां पैदल चढ़कर जाना और दर्शनोपरांत उन्हीं सीढ़ियों पर कुछ देर बैठकर वादी की खूबसूरती को आंखों से पी जाना। बयाँ करते-करते थक जाना मगर चुप होने का नाम न लेना। मगर इन सबके बीच जब तन्हाई आकर डस जाए तो कुछ दर्द के साए उमड़ने लगते हैं और ना चाहते हुए भी ख़्वाबों-ख्यालों का ताना-बाना कुछ इस तरह सामने आता है ऐ हवा कभी तो मेरे दर से गुजर, देख कितनी महकी यादें संभाली हैं मैंने, संग तेरे कर जाने को, हवा हो जाने को। ऐ बहार कभी तो इधर भी रुख कर, देख कई गुलाब मैंने भी रखे थे कभी, किताबों में मुरझाने को, पत्ता-पत्ता हो जाने को। ऐ चाँद थोड़ी चाँदनी की इनायत कर, कई छाले मैंने भी सजा कर रखे हैं, बेजान बदन तड़पाने को, रूह का दर्द छिपाने को। ऐ चिराग घर में कुछ तो रोशनी कर, कई बार आशियाँ जलाया है मैंने, उजाला पास बुलाने को, अँधेरा दूर भगाने को। ऐ शाम ना