मेरे अजनबी हमसफर.....
मेरे अजनबी हमसफर..... वो ट्रेन के रिजर्वेशन के डब्बे में बाथरूम के तरफ वाली सीट पर बैठी थी... उसके चेहरे से पता चल रहा था कि थोड़ी सी घबराहट है उसके दिल में कि कहीं टीटी ने आकर पकड़ लिया तो..कुछ देर तक तो पीछे पलट-पलट कर टीटी के आने का इंतज़ार करती रही। शायद सोच रही थी कि थोड़े बहुत पैसे देकर कुछ निपटारा कर लेगी। देखकर यही लग रहा था कि जनरल डब्बे में चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें आकर बैठ गयी, शायद ज्यादा लम्बा सफ़र भी नहीं करना होगा। सामान के नाम पर उसकी गोद में रखा एक छोटा सा बेग दिख रहा था। मैं बहुत देर तक कोशिश करता रहा पीछे से उसे देखने की कि शायद चेहरा सही से दिख पाए लेकिन हर बार असफल ही रहा...फिर थोड़ी देर बाद वो भी खिड़की पर हाथ टिकाकर सो गयी। और मैं भी वापस से अपनी किताब पढ़ने में लग गया...लगभग 1 घंटे के बाद टीटी आया और उसे हिलाकर उठाया। “कहाँ जाना है बेटा” “अंकल दिल्ली तक जाना है”“टिकट है ?” “नहीं अंकल …. जनरल का है ….लेकिन वहां चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें बैठ गयी”“अच्छा 300 रुपये का पेनाल्टी बनेगा” “ओह …अंकल मेरे पास तो लेकिन 100 रुपये ही हैं”“ये तो गलत बात है बेटा …..पेनाल्टी तो