शायरी
1. खुदा जाने कैसी कसर रह गई उसे चाहने में, की वो जान हे न पाई की मेरी जान है वो
2. नसीब का खेल भी अजीब तरह से खेला हमने, जो न था नसीब में उसी को टूटकर चाह हमने
3. न वफ़ा का जिक्र होगा न वफ़ा की बात होगी, अब मुहब्बत जिससे भी होगी मतलब के साथ होगी
4. इस जहाँ में अपना साया भी, रौशनी हो तो साथ देता है
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