मुझे वे शामें बहुत पसंद हैं

मुझे वे शामें बहुत पसंद हैं, जिनमें महफिल जमे । लोग थिरकें और सुबह से दोपहर तक की जा चुकी जिंदगी को हल्की सी खुसबु से महका दें । जिस शहर की शामें गुलज़ार हों, उस शहर को ही तरक्की वाला कहा जाता है। वह जिंदा शहर कहलाता है । और रात, जो हमें सुकून की नींद दें, जिसमें कल की फिक्र ऐसे न घुल मिल जाए कि पूरी रात आंख छत को ताकती गुज़रे ।

--दिपेश कुमार वर्मा

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