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चारो और ठंडी हवाये चल रही है

 आज आसमान मे कुछ बदल छाए हुए है और वो मुस्कुराते हुए अपनी आंखे चुराते हुए एक तितली को पकड़ रही है चारो और ठंडी हवाये चल री है और वो अपनी बांहे फैलाकर आंखे बंद करके भागते हुए हर कदम के साथ उस हवा को जीती जारी है चारो और हरियाली लहरा रही है और वो अपनी मुस्कुराहट से उसे छेड़ते हुए अपने पहने कपड़ो मे खूब इठला रही है पेड़ पर कुछ चिड़ियऐ चहक रही है और वो उनके साथ मिलकर अपनी भौहो से इशारा करके सवाल कर रही है और पूछ रही है कि क्यों सोच रहा है कोई उसे इतना क्यों वो इतना सब कुछ रही है किसी के खवाबो मे.......

हिजाब विवादित मुद्दा

हिजाब विवाद के बीच सबसे ज्यादा ' जो सवाल उठ रहा है , वह यह है कि इस्लाम में हिजाब को लेकर क्या व्यवस्था है । इस्लाम में हिजाब अनिवार्य है या नहीं इसे समझने के लिए कुछ लेख पर्याप्त नहीं हैं । इस मुद्दे को सही से समझना है तो कई किताबें पढ़ने की जरूरत होगी । इसके बाद हिजाब और नकाब के बीच के अंतर को समझा जा सकता है । सुन्नी समुदाय में चार प्राथमिक विचारधाराएं हैं हनफी , मलिकी , शाफी और हनबली हनफियों और मलिकियों का मानना है कि महिला के चेहरे और हाथों को ढकना अनिवार्य नहीं है , जबकि इमाम शाफी और हनवली विचारधारा के अनुयायियों का कहना है कि महिला को पूरी तरह से ढका होना चाहिए । इस्लाम में आस्था एक व्यक्तिगत मामला है । इस्लामी शिक्षा दो चीजों के बारे में स्पष्ट है : आस्था और सामाजिक व्यवस्था । व्यक्ति की अपनी आस्था होती है लेकिन उसे समाज में कैसे रहना है , इसका भी ध्यान रखना चाहिए । एक हदीस से सीख मिलती है कि वह काम करना जिससे सकारात्मक नतीजा निकले और वह काम छोड़ देना , जिसका प्रभाव नकारात्मक हो । पैगंबर साहब पर कुरान की जो पहली आयत आई , वह थी ' पढ़ो ! ' ( इकरा ) जिस पर सभी विद्वान

मुझे वे शामें बहुत पसंद हैं

मुझे वे शामें बहुत पसंद हैं, जिनमें महफिल जमे । लोग थिरकें और सुबह से दोपहर तक की जा चुकी जिंदगी को हल्की सी खुसबु से महका दें । जिस शहर की शामें गुलज़ार हों, उस शहर को ही तरक्की वाला कहा जाता है। वह जिंदा शहर कहलाता है । और रात, जो हमें सुकून की नींद दें, जिसमें कल की फिक्र ऐसे न घुल मिल जाए कि पूरी रात आंख छत को ताकती गुज़रे । --दिपेश कुमार वर्मा

है तुम हो मेरे लिए "मामूली"

मैं महसूस करना चाहता था कि जब लोग बदल जाते है तब कैसे जी पाते है। मैंने पकड़ के देखा है किसी का हाथ कंपकंपी सी छूट जाती है और याद आ जाती हो तुम। सोचता हूं हाथ तो तेरे भी लरजे होंगे जब तूने किसी और का हाथ थामा होगा। मुहब्बत का टूटना ठीक वैसा ही है जैसे चाय पीते हुए होठों से लगते ही कप का अपनी ही गोद में टूट कर बिखर जाना। बड़ी पीड़ा होती है, सोचता हूं जिंदगी का यही हश्र देखना था। क्या कभी शून्य के पीछे भी कोई जीवन होता है, अगर मैं फिर भी जी रहा हूं तो जरूर कोई कारण है। कितने लोग आए गए हो गए, कितने ही आएंगे जाएंगे पर मैं आगे नहीं बढ़ पाया। मेरी किताबें भी उदास है कि मैं उनसे प्रेम नहीं करता। कुछ नई किताबें पड़ी है रैक में पर पढ़ ही नहीं पाया। अन्तिम पढ़ा उपन्यास गुनाहों का देवता और फिफ्टी शेड्स की सीरीज थी, फिर कुछ नहीं पढ़ पाया, ना कुछ लिख पाता हूं। ऐसा नहीं है कि मैं तेरे बिना उदास हूं बस तेरे बिना बिना जड़ों का पोधा हूं। अब कोई फर्क नही पड़ता लोग मेरे बारे में क्या सोचते है, मुझे क्या कहते है। अब फर्क नहीं पड़ता तुझ पर लिखी कविताओं को कोई पढ़े या ना पढ़े,..... कौन कैसा है क्यों है मुझे

dipesh kumar verma

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