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Showing posts from April, 2017

सैनिकों पे हमला ये शत्रु करे बार - बार

सवाल चुभे तो सूचित कीजिये- तिरंगे को ओढ़ आये सैनिक सवाल करे समस्या निदान वाला,,,आज कब आएगा, सैनिकों पे हमला ये शत्रु करे बार - बार अपनी हरकतों से,,,,,,बाज कब आएगा,, भारत की वीर सेना शहादत देती रही उनकी शहादत पे,,,,,, नाज कब आएगा, हाथ से धोना न पड़े एक भी जवान हमें दिल्ली मुझे बता ऐसा,,राज कब आएगा। दिपेश कुमार

क्या था *साईमन कमीशन*?

क्या था *साईमन कमीशन*? जब बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर विदेश से पढकर भारत में बडौदा में नौकरी करने लगे तो उनके साथ बहुत ज्यादा जातिगत भेदभाव हुआ। इस कारण उन्हें 11 वें दिन ही नौकरी छोड़कर बडौदा से वापस बम्बई जाना पड़ा। उन्होंने अपने समाज को अधिकार दिलाने की बात ठान ली। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को बार-बार पत्र लिखकर depressed class की स्थिति से अवगत करवाया और उन्हें अधिकार देने की माँग की। बाबा साहेब के पत्रों में वर्णित छुआछूत व भेदभाव के बारे में पढकर अंग्रेज़ दंग रह गए कि क्या एक मानव दूसरे मानव के साथ ऐसे भी पेश आ सकता है। बाबा साहेब के तथ्यों से परिपूर्ण तर्कयुक्त पत्रों से अंग्रेज़ी हुकूमत अवाक् रह गई और 1927 में depressed class की स्थिति के अध्ययन के लिए मिस्टर साईमन की अध्यक्षता में एक कमीशन का गठन किया गया। जब ब्राह्मणवादी पार्टी कांग्रेस सचिव गांधी को कमीशन के भारत आगमन की सूचना मिली तो उन्हें लगा कि यदि यह कमीशन भारत आकर depressed class की वास्तविक स्थिति का अध्ययन कर लेगा तो उसकी रिपोर्ट के आधार पर अंग्रेजी हुकूमत इस वर्ग के लोगों को अधिकार दे देगी। कांग्रेस व महत्मा गांधी ऐस

आँखों के ग़म-कदों में उजाले हुए तो हैं

आँखों के ग़म-कदों में उजाले हुए तो हैं बुनियाद एक ख़्वाब की डाले हुए तो हैं तलवार गिर गई है ज़मीं पर तो क्या हुआ दस्तार अपने सर पे सँभाले हुए तो हैं अब देखना है आते हैं किस सम्त से जवाब हम ने कई सवाल उछाले हुए तो हैं ज़ख़्मी हुई है रूह तो कुछ ग़म नहीं हमें हम अपने दोस्तों के हवाले हुए तो हैं गो इंतिज़ार-ए-यार में आँखें सुलग उठीं राहों में दूर दूर उजाले हुए तो हैं हम क़ाफ़िले से बिछड़े हुए हैं मगर 'नबील' इक रास्ता अलग से निकाले हुए तो हैं

यही शाख़ तुम जिसके नीचे चश्म-ए-नम हो

यही शाख़ तुम जिसके नीचे चश्म-ए-नम हो अब से कुछ साल पहले मुझे एक छोटी बच्ची मिली थी जिसे मैंने आग़ोश में ले कर पूछा था, बेटी यहां क्यूं खड़ी रो रही हो मुझे अपने बोसीदा आंचल में फूलों के गहने दिखा कर वह कहने लगी मेरा साथी, उधर उसने अपनी उंगली उठा कर बताया उधर, उस तरफ़ ही जिधर ऊंचे महलों के गुंबद मिलों की सियाह चिमनियां आसमां की तरफ़ सर उठाए खड़ी हैं यह कह कर गया है कि, मैं सोने चांदी के गहने तेरे वास्ते लेने जाता हूं, रामी

मेरी माँ अब मिट्टी के ढेर के नीचे सोती है

मेरी माँ अब मिट्टी के ढेर के नीचे सोती है उसके जुमले, उसकी बातों, जब वह ज़िंदा थी, कितना बरहम (ग़ुस्सा) करती थी मेरी रोशन तबई (उदारता), उसकी जहालत हम दोनों के बीच एक दीवार थी जैसे 'रात को ख़ुशबू का झोंका आए, जि़क्र न करना पीरों की सवारी जाती है' 'दिन में बगूलों की ज़द में मत आना साये का असर हो जाता है' 'बारिश-पानी में घर से बाहर जाना तो चौकस रहना बिजली गिर पड़ती है- तू पहलौटी का बेटा है' जब तू मेरे पेट में था, मैंने एक सपना देखा था- तेरी उम्र बड़ी लंबी है लोग मोहब्बत करके भी तुझसे डरते रहेंगे मेरी माँ अब ढेरों मन मिट्टी के नीचे सोती है साँप से मैं बेहद ख़ाहिफ़ हूँ माँ की बातों से घबराकर मैंने अपना सारा ज़हर उगल डाला है लेकिन जब से सबको मालूम हुआ है मेरे अंदर कोई ज़हर नहीं है अक्सर लोग मुझे अहमक कहते हैं ।

बर्तन,सिक्के,मुहरें, बेनाम ख़ुदाओं के बुत टूटे-फूटे

बर्तन,सिक्के,मुहरें, बेनाम ख़ुदाओं के बुत टूटे-फूटे मिट्टी के ढेर में पोशीदा चक्की-चूल्हे कुंद औज़ार, ज़मीनें जिनसे खोदी जाती होंगी कुछ हथियार जिन्हे इस्तेमाल किया करते होंगे मोहलिक हैवानों पर क्या बस इतना ही विरसा है मेरा ? इंसान जब यहाँ से आगे बढ़ता है, क्या मर जाता है ?

सुमन बनें हम हर क्यारी के

सुमन बनें हम हर क्यारी के बन उपवन महकें, चलो दोस्त! हम सूरज बनकर धरती पर चमकें! एक धरा है, एक गगन है, सब की खातिर एक पवन है, फिर क्यों बँटा-बँटा-सा मन है? आओ स्नेह-कलश बनकर हम हर उर में छलकें! कहीं खो गया है अपनापन, सब के होठों पर सूनापन, चुप्पी साधे, हर घर-आँगन। बुलबुल, कोयल, मैना बनकर डाल-डाल चहकें! नयन किसी के रहें न गीलें, हँसते-हँसते जीवन जी लें, अमृत-विष मिल-जुलकर पी लें। हर मुश्किल से तपकर निकलें कुंदन बन दमकें!

कितने सूरज हैं तुम्हारे सीने में

कितने सूरज हैं तुम्हारे सीने में कितनी नदियाँ हैं कितने झरने हैं कितने पहाड़ हैं तुम्हारी देह में कितनी गुफ़ाएँ हैं कितने वृक्ष हैं कितने फल हैं तुम्हारी गोद में कितने पत्ते हैं कितने घोंसले हैं तुम्हारी आत्मा में कितनी चिड़ियाँ हैं कितने बच्चे हैं तुम्हारी कोख में कितने सपने हैं कितनी कथाएँ हैं तुम्हारे स्वप्नों में कितने युद्ध हैं कितने प्रेम हैं केवल नहीं है तो वह मैं हूँ अभी और कितना फैलना है मुझे कितना और पकना है मुझे कहो मैं भी तुम्हारी जड़ों के साथ उग सकूँ कितने सूरज हैं तुम्हारे सीने में कितने सूरज ?

तुम नहीं मिलती तो भी

तुम नहीं मिलती तो भी मैं नदी तक जाता छूता उसके हृदय को गाता बचपन का कोई पुराना अधूरा गीत तुम नहीं मिलती तो भी तुम नहीं मिलती तो भी पहाड़ के साथ घंटों बतियाता वृक्षों का हाथ पकड़ ऊपर की ओर उठना सीखता बीस और इक्कीस की उमर की कोई न भूलने वाली घटना को स्मरण करता कपड़े के जूते में सिहर कर पैर रखता तुम नहीं मिलती तो भी तुम नहीं मिलती तो भी जितना भी मेरे पास पिता था उतना भर बच्चा जनता ही रचता ज़रूर एक आदमी का संसार कुछ अदद काँटों के बीच एक बेहद नाज़ुक कोई फूल भी खिलाता ही बस एक बात अलग होती एक दरवाज़ा होता कभी नहीं बंद होने वाला एक क़ैद अँधेरे से लड़ती चिड़िया होती तुम नहीं होती तो भी मैं नदी तक जाता ही ।

जख्म बन जानेँ की आदत है

जख्म बन जानेँ की आदत है उसकी रुला कर मुस्कुरानेँ की आदत है उसकी मिलेगेँ कभी तोँ खुब रूलायेँ उसको, सुना है रोतेँ हूऐ लिपट जाने की आदत है उसकी

शायरी

हम खुद बेचा करते कभी दर्देदिल की दवा, आज वक़्त ने हमें ला खड़ा किया हमारी ही दूकान पर. तेरी तलाश में निकलूँ भी तो किआ फायदा, तू बदल गया है खोया होता तो अलग बात थी

शायरी

1. खुदा जाने कैसी कसर रह गई उसे चाहने में, की वो जान हे न पाई की मेरी जान है वो 2. नसीब का खेल भी अजीब तरह से खेला हमने, जो न था नसीब में उसी को टूटकर चाह हमने 3. न वफ़ा का जिक्र होगा न वफ़ा की बात होगी, अब मुहब्बत जिससे भी होगी मतलब के साथ होगी 4. इस जहाँ में अपना साया भी, रौशनी हो तो साथ देता है

ना जाने कैसा इम्तिहान ले रही है

ना जाने कैसा इम्तिहान ले रही हैं जिंदगी ...मुकद्दर ....मोहब्बत .........और दोस्त तीनो नाराज चल रहे हैं .......
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प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाए,

प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाए, ओढ़नी इस तरह उलझे कि कफ़न हो जाए, घर के एहसास जब बाजार की शर्तो में ढले, अजनबी लोग जब हमराह बन के साथ चले, लबों से आसमां तक सबकी दुआ चुक जाए, भीड़ का शोर जब कानो के पास रुक जाए, सितम की मारी हुई वक्त की इन आँखों में, नमी हो लाख मगर फिर भी मुस्कुराएंगे, अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे... लोग कहते रहें इस रात की सुबह ही नहीं, कह दे सूरज कि रौशनी का तजुर्बा ही नहीं, वो लड़ाई को भले आर पार ले जाएँ, लोहा ले जाएँ वो लोहे की धार ले जाएँ, जिसकी चौखट से तराजू तक हो उन पर गिरवी उस अदालत में हमें बार बार ले जाएँ हम अगर गुनगुना भी देंगे तो वो सब के सब हम को कागज पे हरा के भी हार जायेंगे अँधेरे वक्त में भी गीत गाए जायेंगे...

दुखिया किसान हम हैं, भारत के रहने वाले,

दुखिया किसान हम हैं, भारत के रहने वाले, बेदम हुए, न दम है, बे-मौत मरने वाले। इंसान बन के आए, गो पाक इसी ज़मीं पर, हमसे मगर हैं अच्छे, ये घास चरने वाले। चक्की मुसीबतों की, दिन-रात चल रही है, करके पिसान छोड़े हमको, हैं पिसने वाले। दुनिया है एक तन तो, हम आत्मा हैं उसकी, लेकिन कुचल रहे हैं, हमको कुचलने वाले। अफ़सोस हाय! हैरत, किस पाप का नतीजा, सबसे हमी हैं निर्धन, धन के उगलने वाले। सर पर हैं कर बहुत-से, कर मंे न एक धेला, घर पर नहीं है छप्पर, वस्तर उधड़ने वाले। जुल्मो-सितम के मारे, दम नाक में हमारा, भगवान तक हुए हैं, पर के कतरने वाले। फुरसत नहीं है मिलती, इक साल काल से है दाने बिना तरसते, नेमत परोसने वाले। ऐ मौज करने वालो, कर देंगे हश्र बरपा, उभरे ‘चकोर’ जब भी, हम आह भरने वाले!

बताएं तुम्हें हम कि क्या चाहते हैं,

बताएं तुम्हें हम कि क्या चाहते हैं, गुलामी से होना रिहा चाहते हैं। फ़क़त इस ख़ता के सज़ावार हैं हम, कि दर्दे-वतन की दवा चाहते हैं। बुरा चाहते हैं जो हम बेकसां का, हम उनका भी दिल से भला चाहते हैं। ग़रीबों को तेरा ही बस आसरा है, निगाहे-करम या ख़ुदा चाहते हैं। इस उजड़े हुए गुलशने-हिंद को फिर, हरा और फूला-फला चाहते हैं। घड़ा पाप का ग़ालिबन भर चुका है, ज़माने से ज़ालिम मिटा चाहते हैं। वतन पर दिलो-जान कुर्बान करके, जो मरकर भी आबे-वफ़ा चाहते हैं।

जो कुछ पड़ेगी मुझ पे मुसीबत उठाऊंगी,

जो कुछ पड़ेगी मुझ पे मुसीबत उठाऊंगी, खि़दमत करूंगी मुल्क की और जेल जाऊंगी। घर-भर को अपने खादी के कपड़े पिन्हाऊंगी, और इन विदेशी लत्तों को लूका लगाऊंगी। चरख़ा चला के छीनूंगी उनकी मशीनगन, आदा-ए-मुल्को-क़ौम को नीचा दिखाऊंगी। अपनी स्वदेशी बहनों को ले-ले के साथ में, भट्टी पे हर कलाल के धरना बिठाऊंगी। जाकर किसी भी जेल में कूटूंगी रामबांस, और कै़दियों के साथ में चक्की चलाऊंगी।

साँझ ही स्याम को लेन गई

साँझ ही स्याम को लेन गई सुबसी बन मे सब जामिनि जायकै । सीरी बयार छिदे अँधरा उरझे उर झाँखर झार मझाइकै । तेरी सी को करिहै करतूति हुती करिबे सो करी तै बनाइकै । भोर ही आई भटू इत मो दुख दाइन काज इतो दुख पाइकै ।

पकड़ लो तुम हाँथ मेरा नही तो भीड़ में खो जाउगा मै

पकड़ लो तुम हाँथ मेरा नही तो भीड़ में खो जाउगा मै बिखर जाउगा सम्भाल लो मुझे रख लो सम्भाल के आँचल में अपने बड़ा सुकून मिलता है मुझे वह सासे रोकी है कई बार अपनी केवल अपना नाम आपके मुह से सुनने के लिए बेबात रोया हू कई बार, न जाने किस लिए अकेला था, अकेला हू और अकेला ही रहूगा यही शायद किस्मत है मेरी यह khwaish सच बड़ी अजीब होती है जाने किस किस चीज़ की उम्मीद कर जाती है देखिये न पागलपन पता नही क्या लिख डाला पता नही किस सोच में सोचता हू सब कुछ है पास मेरे सिवाय तेरी आस के....................

मैंने लिखा कुछ भी नहीं

मैंने लिखा कुछ भी नहीं तुम ने पढ़ा कुछ भी नहीं । जो भी लिखा दिल से लिखा इस के सिवा कुछ भी नहीं । मुझ से ज़माना है ख़फ़ा मेरी ख़ता कुछ भी नहीं । तुम तो खुदा के बन्दे हो मेरा खुदा कुछ भी नहीं । मैं ने उस पर जान दी उस को वफ़ा कुछ भी नहीं । चाहा तुम्हें यह अब कहूँ लेकिन कहा कुछ भी नहीं । यह तो नज़र की बात है अच्छा बुरा कुछ भी नहीं ।

एक बार फिर वह

एक बार फिर वह सोच रही है अपनी जिंदगी के बारे में झुग्गी में बर्तन मांजने से सुबह की शुरूआत करती हुई और टूटी खाट की लटकती रस्स्यिों के झूले में रात को करवट बदलने के बीीच जीवित होने का अहसास दिलाने के लिये क्या कुछ है शेष

जिंदगी का असली #मुकाम अभी बाकी हैं,

🙏जिंदगी का असली #मुकाम अभी बाकी हैं, हमारे इरादों का इंतहा अभी बाकी है, अभी तो नापी है मुटठी भर जमी हमने, अभी तो #सारा जहां बाकी है,🎯